एक छोटे से शहर में रहने वाले ब्रजभूषण जी को हर कोई “पंडित जी” के नाम से जानता था। यह सुनने में भले ही सामान्य लगे, लेकिन दिलचस्प बात यह थी कि ना तो वे किसी पंडित परिवार में जन्मे थे और ना ही पुजारी का काम करते थे। फिर भी, पूरा शहर और यहाँ तक कि इंटरनेट की दुनिया भी उन्हें “पंडित जी” कहती थी। आखिर क्यों?
Shrimad Bhagwad Geeta Adhyaay 2 Karm hai Mahan
सरकारी नौकरी से रिटायरमेंट और पंडित जी की पहचान
ब्रजभूषण जी एक सरकारी दफ्तर में कार्यरत थे और वहीं से पेंशन लेकर रिटायर हुए। उनका एक साधारण सा परिवार था—एक सरल स्वभाव की पत्नी और दो बेटे, जो बड़े शहरों में अच्छी नौकरियों पर थे।
लेकिन उनकी असली पहचान उनके ज्ञान और व्यक्तित्व से बनी। वे सिर्फ सरकारी कर्मचारी नहीं थे, बल्कि अध्ययनशील व्यक्ति थे, जिन्हें धार्मिक ग्रंथों, साहित्य और नई तकनीकों में गहरी रुचि थी। उन्होंने रामायण और भगवद गीता को इतने अच्छे से समझा था कि लोग उनकी व्याख्या सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाते थे।
कंप्यूटर सीखने का दौर और एक नई दोस्ती
यह वह समय था जब भारत में कंप्यूटर क्रांति की शुरुआत हो रही थी। सरकारी दफ्तरों में कंप्यूटर ट्रेनिंग दी जा रही थी, लेकिन ज़्यादातर कर्मचारी इसे सीखने से बच रहे थे। लेकिन ब्रजभूषण जी ने इस मौके को खुले दिल से स्वीकार किया और पूरे जोश के साथ ट्रेनिंग में भाग लिया।
इस ट्रेनिंग को चार युवा प्रशिक्षकों ने लिया था, जो हाल ही में अपनी पढ़ाई पूरी करके निकले थे। इनमें से संदीप नाम का एक युवक था, जो शांत स्वभाव का, धैर्यवान और सिखाने में कुशल था। ब्रजभूषण जी को संदीप का तरीका बहुत पसंद आया, लेकिन उन्होंने जल्द ही देखा कि संदीप पिछले कुछ दिनों से परेशान और मायूस रहने लगा था।
संदीप की हताशा और “पंडित जी” का ज्ञान (Shrimad Bhagwad Geeta Adhyaay 2 Karm hai Mahan)
ब्रजभूषण जी समझ गए कि संदीप किसी बड़ी चिंता में है। एक दिन उन्होंने उसे रात के खाने पर बुलाया और बातचीत के दौरान संदीप की परेशानी पूछी।
संदीप ने बताया कि वह पिछले 5 सालों से एक बड़े प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा था, लेकिन तीसरी बार असफल होने के बाद वह पूरी तरह से टूट चुका था। उसे लगने लगा था कि उसका भविष्य अंधकारमय है, उसकी मेहनत बेकार चली गई और अब वह आगे प्रयास नहीं करना चाहता।
ब्रजभूषण जी ने मुस्कुराते हुए श्रीमद्भगवद गीता का प्रसिद्ध श्लोक सुनाया—
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।।”
और फिर पूछा, “संदीप, जानते हो इसका अर्थ क्या है?”
गीता का ज्ञान और जीवन का मंत्र
संदीप ने उत्सुकता से पूछा, “इसका अर्थ क्या है? और आप इसे हर समस्या का समाधान क्यों मानते हैं?”
ब्रजभूषण जी ने समझाया—
“अर्जुन, तेरा अधिकार सिर्फ कर्म करने में है, लेकिन फल पर नहीं। कर्म का परिणाम कैसा होगा, यह तेरे हाथ में नहीं। इसलिए, ना तो फल की चिंता कर और ना ही निष्क्रियता अपना।”
उन्होंने आगे उदाहरण देते हुए कहा—
- हर इंसान अपने कार्य के परिणाम को लेकर चिंतित रहता है।
- बच्चा पढ़ाई से पहले ही फर्स्ट आने का सपना देखता है।
- व्यवसायी दिन की शुरुआत में ही मुनाफे की उम्मीद करता है।
- गृहिणी खाना बनाते समय तारीफ की आशा रखती है।
- इंजीनियर कोई प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले मास्टरपीस की कल्पना करता है।
लेकिन असलियत यह है कि हमारे हाथ में सिर्फ हमारा कर्म है, उसका परिणाम नहीं।
“फेल्योर” से डरना नहीं, बल्कि सीखना चाहिए
संदीप ने पूछा, “अगर हम रिजल्ट की उम्मीद ही ना रखें, तो फिर मोटिवेशन कैसे मिलेगा?”
ब्रजभूषण जी मुस्कुराए और बोले—
“इसका मतलब यह नहीं कि हम अपने प्रयासों में कमी करें। बल्कि इसका अर्थ यह है कि हमें अपना 100% देना है, लेकिन रिजल्ट की चिंता में खुद को कमजोर नहीं पड़ने देना है।”
उन्होंने उदाहरण दिया—
- एक किसान खेत में बीज बोता है, रात-रात जागकर फसल को पानी देता है। लेकिन अगर सूखा पड़ जाए या बीमारी लग जाए, तो क्या यह उसकी गलती है? नहीं!
- एक छात्र पूरे साल मेहनत करता है, लेकिन पेपर चेक करने वाले के मूड पर नंबर भी निर्भर कर सकते हैं। ऐसे में अगर नंबर कम आए, तो उसे खुद पर संदेह नहीं करना चाहिए।
सफलता और असफलता हमारे हाथ में नहीं, लेकिन मेहनत पूरी करनी ही होगी। यही गीता का संदेश है।
संदीप की नई सोच और “पंडित जी” की पहचान
ब्रजभूषण जी की बातें संदीप के दिल को छू गईं। उसने फैसला किया कि वह एक बार फिर पूरी मेहनत से परीक्षा की तैयारी करेगा।
कुछ दिनों बाद, जब कंप्यूटर ट्रेनिंग पूरी हुई और संदीप की टीम को विदाई दी जा रही थी, तब संदीप ने सभी कर्मचारियों के सामने कहा—
“हमें सीखने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए, क्योंकि शिक्षक कहीं भी और किसी भी रूप में मिल सकते हैं।”
इसके बाद से ही ब्रजभूषण जी का नाम “पंडित जी” पड़ गया। उनकी गीता की व्याख्या, उनकी सोच, और जीवन जीने का तरीका उन्हें सिर्फ उनके शहर ही नहीं, बल्कि इंटरनेट तक भी “पंडित जी” के नाम से मशहूर कर चुका था।
निष्कर्ष:
अगर आप भी अपने जीवन में बार-बार असफलताओं से निराश हो जाते हैं, तो गीता का यह संदेश याद रखें—
✅ रिजल्ट से पहले हार मत मानो।
✅ कर्म करते रहो, क्योंकि परिणाम तुम्हारे हाथ में नहीं।
✅ खुद पर विश्वास रखो और अपना 100% दो।
अगर आपको यह कहानी प्रेरणादायक लगी, तो इसे शेयर करें और कमेंट में बताएं कि गीता का यह संदेश आपके जीवन में कैसे काम आएगा! 🚀🔥
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