Shrimad Bhagwad Geeta Adhyaay 3 Aatam Amar hai – रिटायरमेंट के बाद ज़िंदगी अक्सर सुस्त और खाली हो जाती है, लेकिन पंडित जी का सफर इससे अलग था। जहाँ लोग पार्क में टहलने, पौधों में पानी डालने और पड़ोसियों से मेलजोल बढ़ाने में व्यस्त हो जाते हैं, वहीं पंडित जी अपनी श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञान ब्लॉग के ज़रिए दुनिया से जुड़े रहे। उनकी छोटी-सी कंप्यूटर स्क्रीन उनके लिए पूरी दुनिया की खिड़की बन चुकी थी। वे अपनी बातें कह सकते थे, दूसरों की सुन सकते थे और ज्ञान को बाँट सकते थे।

उनकी उम्र बढ़ रही थी, शरीर थकने लगा था, लेकिन उनका मन अब भी युवा था। हर दिन लोग उन्हें ईमेल करके अपनी ज़िंदगी की समस्याएँ बताते और गीता के ज्ञान से वे हर समस्या का समाधान निकाल देते। लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ, जिसने पंडित जी को भी गहरे विचार में डाल दिया

Shrimad Bhagwad Geeta Adhyaay 3 Aatam Amar hai

Shrimad Bhagwad Geeta Adhyaay 3 Aatam Amar hai

मित्र का दुख और गीता का ज्ञान – Shrimad Bhagwad Geeta Adhyaay 3 Aatam Amar hai

रविकांत, जो उनके सबसे पुराने और प्रिय मित्र थे, गहरे दुख में डूबे थे। उनकी पत्नी रश्मि, जो उनकी ज़िंदगी का अहम हिस्सा थीं, अचानक उन्हें छोड़कर अनंत यात्रा पर निकल गईं। यह खबर पंडित जी को भी झकझोर गई।

रश्मि और रविकांत की जोड़ी अटूट प्रेम और समर्पण की मिसाल थी। 40 साल पहले, जब वे नए-नए शादीशुदा जोड़े के रूप में मोहल्ले में आए थे, तब वे पंडित जी और उनके परिवार के करीबी मित्र बन गए थे। लेकिन ईश्वर का खेल अजब होता है—जिस रविकांत को बच्चों से अपार प्रेम था, उसे खुद संतान का सुख नहीं मिला।

रश्मि ने न जाने कितनी कोशिशें कीं, डॉक्टर्स के चक्कर, मंदिरों में प्रार्थना, व्रत-उपवास, लेकिन संतान सुख उनकी किस्मत में नहीं था। फिर भी, उन्होंने पंडित जी के बच्चों पर अपनी ममता उड़ेल दी और अपनी कमी को प्रेम और अपनापन देकर पूरा किया।

शरीर नश्वर है, आत्मा अमर है (Shrimad Bhagwad Geeta Adhyaay 3 Aatam Amar hai )

अब जब रश्मि नहीं रही, तो रविकांत पूरी तरह टूट चुके थे। वे हरिद्वार में उनकी अस्थियों का विसर्जन करने गए, लेकिन उनका मन शोक से बाहर नहीं आ पा रहा था। वे एक बेंच पर बेजान बैठे थे, जैसे जीवन का कोई उद्देश्य ही नहीं बचा।

पंडित जी ने यह देखा और वे उनके पास गए। उन्होंने रविकांत के कंधे पर हाथ रखा और श्रीमद्भगवद्गीता का यह श्लोक पढ़ा:

“नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो, न शोषयति मारुतः।।”

(Shrimad Bhagwad Geeta Adhyaay 3: Aatma Amar Hai)

रविकांत ने सिर उठाया और पूछा, “इसका यहाँ क्या अर्थ है?”

पंडित जी ने मुस्कराते हुए समझाया:

“आत्मा को न कोई शस्त्र काट सकता है, न कोई आग जला सकती है, न जल गला सकता है और न ही हवा सुखा सकती है। आत्मा अजर-अमर है, यह केवल एक शरीर से दूसरे शरीर की यात्रा करती है।”

सच्चाई को स्वीकार करना ही मोक्ष है (Shrimad Bhagwad Geeta Adhyaay 3 Aatam Amar hai )

रविकांत को समझ में आने लगा कि उनका शोक निरर्थक है। रश्मि गई नहीं है, वह बस अपनी आत्मा के अगले सफर पर निकल चुकी है। शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा कभी नहीं मरती। यही बात भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र में समझाई थी, जब वह अपने परिजनों के वध के भय से युद्ध करने को तैयार नहीं थे।

“हम अपने प्रियजनों के साथ जन्मों से जुड़े होते हैं, लेकिन यह रिश्ते केवल शरीर तक सीमित होते हैं। आत्मा इन बंधनों से मुक्त है।”

रविकांत ने पंडित जी की बातें ध्यान से सुनीं और उनकी आँखों में एक नई चमक आ गई। उन्होंने महसूस किया कि रश्मि की मृत्यु का शोक करना आत्मा का अपमान है। वे उसे सम्मान के साथ विदा करेंगे और उसकी यादों को अपनी ताकत बनाएंगे, कमजोरी नहीं

श्रीमद्भगवद्गीता से सीखें जीवन का सही अर्थ – Shrimad Bhagwad Geeta Adhyaay 3 Aatam Amar hai

भगवद्गीता हमें यही सिखाती है—

शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा अमर है।
हर दुख का हल गीता में छुपा है, बस हमें उसे समझना है।
जीवन में मोह-माया से ऊपर उठकर कर्मयोगी बनें।
अपनों को खोने का दुख स्वाभाविक है, लेकिन सत्य को स्वीकार करना ही सच्चा ज्ञान है।

अगर आपके जीवन में भी कोई कठिनाई है, तो श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान अपनाइए और जीवन को नई दिशा दीजिएShrimad Bhagwad Geeta Adhyaay 3: Aatma Amar Hai हमें यही सिखाता है कि आत्मा अमर है और हमें सच्चाई को स्वीकार करके आगे बढ़ना चाहिए

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